तो

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संजना जब तक अपना नाश्ता लेकर आई राज ऑफिस के लिए निकल चुके थे, आज फिर संजना डाईनिंग टेबल पर अकेली बैठी प्लेट में चम्मच घुमा रही थी। उसे तो याद भी नहीं आता कितने दिन बीत गए उसे राज के साथ बैठ कर चाय पिए, फुरसत भरे पलों में बस यूं ही दो बातें किए हुए, अपना दुख सुख बांटे हुए। पिछले बाईस सालों में वक्त की सड़क पर चलते चलते संजना और राज का रिश्ता एक ऐसे मोड़ पर आ गया था कि दोनों नदी के किनारों की तरह हो कर रह गए थे। साथ चल तो रहे थे मगर दो घड़ी एकसाथ बैठ कर बात करने की फुरसत ना निकाल पाते। राज तो अपने बिज़नेस में व्यस्त रहते और संजना आलीशान बंगले में अकेलेपन से जूझती अपनी खीज नौकरों पर निकालती रहती।