दरवाजे पर रंगोली सजाती मालिका गहरी उदासी में डूबी थी, रंग साँचे के भीतर समा ही नहीं रहे थे, पिछली कई दिवालियाँ उसकी इसी ऊहापोह में बीत गयी थी बच्चों का इंतज़ार करते उस घर को सजाए या यूं ही माँ लक्ष्मी के समक्ष हाथ जोड़कर उठ खड़ी हो कितने प्रकार के फल-फ्रूट, मिठाइयाँ और मेवे उस घर में आते थे जब यह घर सही मायनों में एक घर था एक भरापूरा घर जिसमें बच्चों की किलकारियों के साथ-साथ उसके पति आकाश की चहकती हँसी गूँजा करती थी अब तो यह घर उसे घर कम मकान अधिक लगने लगा था जिसमें सुबह-शाम अब उसकी आती-जाती साँसों के अलावा और कोई आवाज़ सुनाई नहीं देती