समर्पण

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प्रिय दोस्तों, प्रेम को शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता है,प्रेम केवल दो दिलों द्वारा महसूस किया जा सकता है।प्रेम अमर है, प्रेम अजर है। अपने आप को प्रेम में पूरी तरह समर्पित कर चुकी एक नायिका के अंतर्मन की बात... 1-"समर्पण" मैं हूँ तेरे लिए, तुम हो मेरे लिए, प्रेम का तेल भरकर, जलाये दीए, तुझपे वारी हूँ मैं, ये दिल हारी हूँ मैं, जिंदगी भर समर्पण, तुम्हारे लिए।। प्रेम की वेदना, कह रही सुन सजन, मिट ही