अपनी अपनी मरीचिका - 16

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दुनिया का चक्र अपनी रफ्तार से चल रहा है। न तेज, न धीरे। सम गति से। परिस्थितिवश हमें ही लगता है कि समय वहुत तेजी से या बहुत धीरे-धीरे गुजर रहा है। भौतिक और सांसारिक दृष्टि से सब कुछ करते हुए भी मन व्यग्र बना रहता है। ऊपर से कुछ भी असामान्य नहीं लगता लेकिन सचमुच एक बेचैन लावा अंदर-ही-अंदर खौल रहा होता है। चेहरे को भंगिमाओं से नहीं, यदि मन की हलचल को सीधा पढने का कोई तरीका होता तो दुनिया का नक्शा कोई दूसरा रूप ग्रहण कर चुका होता।