काश में माँ न होती

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काश! मैं माँ न होती आकाश में घने बादल छाये थे. रह-रह कर बिजली कड़कती थी. जनवरी की ठंड में सरसराती हवा के साथ खिड़की से आती वर्षा की फुहारों से प्राची कँपकँपा उठी. शाल को कंधे से उठाकर सर पर लपेटते हुए वह खिड़की के दरवाज़े बंद करने को आगे बढ़ी तो बादलों की तेज गड़ग‌ड़ाहट के साथ चमकती हुई बिजली कड़कड़ाते हुए समीप ही नीचे धरती में समा गई. उसके तीव्र प्रकाश में अपने घर के मुख्य द्वार के पास रक्खे नगर निगम के डस्टबिन के समीप बने चबूतरे पर बैठी एक छाया को देख कर