छूटी गलियाँ - 19

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राहुल हतप्रभ था उसने खुद को मुझसे छुड़ाया, मुझे सोफे पर बैठाया और कुछ देर तक मेरे कंधे पर हाथ रखे बस खड़ा ही रह गया। ये संभवतः पहली बार था जब वह अपनी मम्मी को रोते हुए देख रहा था। हालांकि पिछले तीन सालों में मैं दबे छुपे कई बार आँसू बहा चुकी थी लेकिन शायद हर बार थोड़ा सा गुबार शेष रह जाता था जो आज सारे बाँध तोड़ कर बह निकला और इसी के साथ मेरी बेबसी राहुल के सामने सैलाब सी बह रही थी। जिसमे राहुल डूब उतरा कर कोई थाह पाने की कोशिश कर रहा था, जो उसे किचन में दिखी वह दौड़ कर पानी ले आया। आँसुओं का आवेग कम हो गया था लेकिन मेरी विवशता अब भी मेरे चेहरे पर चिपकी थी। मैंने धीरे से नज़रें उठा कर राहुल की ओर देखा, उसने मेरा सिर अपने सीने से लगा लिया, उसकी हथेलियों का स्नेहिल स्पर्श मुझे सांत्वना दे रहा था।