सूखी मछलियों पर नमक भुरकती आई की झुकी पीठ दूर से यूँ प्रतीत हो रही थी मानों समुद्र में कोई डॉलफ़िन छलांगे भरते वक़्त पानी से ऊपर आ गई हो और फिर वापिस लौटते हुए उसका मुँह और पूँछ तो पानी में समा गए हों किन्तु बीच का हिस्सा अपनी सतह से ऊपर देर तक दिखाई देता रहता है। “आई मैं मदद कर दूँ ?” “नको रानी... आज तू आएगी मेरी मदद करने कू, कल कोण करने का ?” रानी को जवाब देती आई कुछ ज्यादा ही कठोर हो जाया करती थी