बाबा ने जब डायरी लिखना सिखाया था तो कई बातों के साथ उन्होंने यह बात भी बताई थी कि डायरी के माध्यम से जितना अच्छा आत्मविश्लेषण किया जा सकता है, उसका जोड़ तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा। इसीलिए डायरी की गोपनीयता बहुत जरूरी है। सोचता हूँ, हमारे कार्य-व्यवहार में ऐसा कुछ होना ही क्यों चाहिए कि उसे छिपाना पड़े? अच्छा या खराब, भला या बुरा जो कुछ हम करते हैं यदि उसके पीछे गलत इरादा नहीं है तो सार्वजनिक रूप से खोलकर रख देने में क्या बुराई है? दुनिया तो खेल ही नीयत का है।