अगस्त, 2007 बरसात अपने पूरे यौवन पर थी बादल कई बार दिन को ही रात बनाकर खेल रहे थे। सावन का पावन महीना था भक्त भीगते झूमते बाबा(भोलेनाथ) को मनाने कांवर उठाये हरिद्वार से जल भरकर अपने अपने श्रद्धा धाम की और दौड़ रहे थे। चारों और वातावरण भोले की बम से गूँज रहा था। सावन की शिवरात्री को क्यों ना नीलकण्ठ में जाकर जल चढ़या जाए ,मैंने अपने मित्र नरेंद्र सिंह आरोलिया से कहा। बहुत अच्छा विचार है यार चलो प्रोग्राम बनाते हैं, कल तय करते हैं कैसे चलना है और बाकी लोगों से भी पूछ लेते हैं नरेंद्र ने