पता नहीं चाचा की सख्ती कहां चली गई थी। शायद उनसे उम्र ने बहुत कुछ छीन लिया था। जो कुछ भी उनके वश में नहीं था उन्होंने उससे हार मान ली थी। हथियार डाल दिए थे। मुझे लगा जैसे माहौल में कुछ घुटन महसूस कर रहा हूं। एक घंटा हो भी रहा था। तो मैं उठा और चाचा से बोला ‘चाचा जी अब चलता हूं। काफी समय हो गया।’ तो वह बोले ‘अरे नाहीं बच्चा, ऐइसे कहां जाबा? अरे एतना बरिस बाद आए है। कुछ खाए-पिए नाहीं।