बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा - 1

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चार घंटे देरी से जब ट्रेन लखनऊ रेलवे स्टेशन पर रुकी तो ग्यारह बज चुके थे। जून की गर्मी अपना रंग दिखा रही थी। ग्यारह बजे ही चिल-चिलाती धूप से आंखें चुंधियां रही थीं। ट्रेन की एसी बोगी से बाहर उतरते ही लगा जैसे किसी गर्म भट्टी के सामने उतर रहा हूं। गर्म हवा के तेज़ थपेड़े उस प्लेटफॉर्म नंबर एक पर भी झुलसा रहे थे। अपना स्ट्रॉली बैग खींचते हुए मैं वी. आई. पी. एक्जिट के पास बने इन्क्वारी काउंटर पर पहुंचा यह पता करने कि जौनपुर के लिए कोई ट्रेन है, तो वहां से निराशा हाथ लगी।