भंगन

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“परे हटिए.......” “क्यों?” “मुझे आप से बू आती है।” “हर इंसान के जिस्म की एक ख़ास बू होती है....... आज बीस बरसों के बाद तुम्हें इस से तनफ़्फ़ुर क्यों महसूस होने लगा?” “बीस बरस.......अल्लाह ही जानता है कि मैं ने इतना तवील अर्सा कैसे बसर किया है।” “मैं ने कभी आप को इस अर्से में तकलीफ़ पहुंचाई?”