१- "पगली बदली" है समां बारिश का, धरती का आँचल झूम रहा, मौसम-ए-बसंत में नटखट सा अली घूम रहा।। फुहार बूँदों की इस वसुंधरा को सिंचित करें, कोपलें हँसने लगी खग मिल वन को गुंजित करें, पेडों पेडों की डालियों में इक आहत सी जगी, सारी कुम्हिलाई हुई कलियों की सब नींद भगी, नई आशाएं, नए सपनें चमन बुन रहा, मौसम-ए-बसंत में नटखट सा अली घूम रहा।। भीनी भीनी सी ये खुशबू मन को महकाए, लहलहाती