वीकेंड चिट्ठियाँ - 14

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सुनो यार पागल आदमी, तुमसे ही बात कर रहा हूँ, तुम जो सड़क के किनारे फटे कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, उलझे बालों के साथ हर मौसम में पड़े रहते हो। ज़ाहिर है तुम ऐसे पैदा तो नहीं हुए होगे। मुझे मालूम है ये चिट्ठी तुम तक कभी नहीं पहुँचेगी । इसीलिये वो सारी चिट्ठियाँ लिखना सबसे ज़रूरी होता है जो कभी अपने सही पते पर नहीं पहुँचती।