तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 25

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उपसंहार कल शाम में आयी डाक सुविज्ञ के चेम्बर में उनके टेबल पर बायीं ओर की टेª में अन्य लिफाफों के साथ रखी थी। सफेद लम्बे लिफाफे पर नजर पड़ते ही... अप्पी। दिमाग में कौधा... हाॅँ, अप्पी का ही खत था ये ....। उन्होंने उसे बिना खोले ही मेज की दराज में डाल उसे लाॅक कर दिया था.. उम्र के इस पड़ाव पर भी अप्पी का पत्र उनमें अतिरिक्त कुछ संचारित तो कर ही देता है... यह अतिरिक्त कुछ पता नहीं रोमांच है ... भय है या फिर कुछ ऐसा जो अब भी अनाम है।