करोगे कितने और टुकड़े - 2

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सही मायने में यह आजादी से पहले जब धर्मांधता के वशीभूत कुछ लोगों ने खिलाफत के लिए आंदोलन शुरू किया तो तब की सर्वेसर्वा बड़ी पार्टी, इससे देश को होने वाले नुकसान को लेकर आंखें मूंदे रही। उसे अपने समर्थकों की संख्या बढ़ाने, सर्वेसर्वा बने रहने का जुनून था। लेकिन तब तक के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति जो धर्मांधता, सांप्रदायिकता के कट्टर विरोधी थे पता नहीं किस कारण से शांत रहने की बात छोड़िए बराबर इस आंदोलन की शुरुआत करने वाले अली बंधुओं को समर्थन देते रहे।