हिम स्पर्श - 63

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63 “उठो चलो, कहीं बाहर चलते है। कुछ अंतर साथ साथ चलते हैं।“ वफ़ाई ने कहा। “इस मरुभूमि में कहाँ जाएँगे हम?” “क्यूँ? मरुभूमि में नहीं चल सकते क्या? चलने के लिए रास्ता ही तो चाहिए।“ “चरण भी तो चाहिए।” “चरण तो सब के पास होते हैं, उसे उठाने का साहस चाहिए श्रीमान।“ “यह साहस कहाँ से आता है?” “मैं तो चली, तुम आ जाओ मेरे पीछे पीछे।“ वफ़ाई चल पड़ी। “अरे, रुको। मैं भी...।” जीत पुकारता रहा, वफ़ाई चलती रही। जीत ने गति बढाई, वफ़ाई के साथ हो गया। दोनों साथ साथ चलते रहे। मरुभूमि खाली थी, मौन