62 द्वार पर वफ़ाई खड़ी थी। वह जीत को ही देख रही थी। जीत चौंक गया। कब से वफ़ाई यहाँ खड़ी होगी? क्या वह मेरे अंदर चल रहे द्वंद को देख रही होगी? जीत ने अपने आप को देखा। उसके दोनों हाथों की मुट्ठी अभी भी बंध थी। दाहिना हाथ हवा में उठा हुआ था। एक विचित्र मुद्रा थी वह। जीत ने अपने उठे हुए हाथ को नीचे किया, हाथ की मुट्ठियाँ खोल दी, सीधा खड़ा हो गया। वफ़ाई को देखने लगा। उसकी आँखों में एक आभा थी, होठों पर स्मित था। भिन्न सी आभा, भिन्न सा स्मित!