अपनी अपनी मरीचिका - 11

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गुलाल से सराबोर, थकान से चूर, विजय से उल्लसित और नवप्रदत्त दायित्वों के बोझ से दबा कुछ देर पहले घर लौटा हूँ। अम्मा और बाबा के चरण स्पर्श करके उन्हें महासचिव पद का चुनाव जीतने की सूचना दी तो दोनों ने बाँहों में लेकर मेरा मस्तक चूम लिया। मेरे सिर और बालों में अटा गुलाल अम्मा और बाबा को भी रंगीन बना गया। हम तीनों ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। विभाजन के केवल पाँच साल बाद बेटा समाज के बुद्धिमान तबके की भावी नाक माने जाने वाले समूह का सिरमोर बनकर आया है, यह इबारत मैं बाबा की आँखों में भली भाँति पढ़ पा रहा था। अम्मा की आँखें, उसका मुखमंडल, उसका अंग-अंग शुद्ध प्रसन्नता से दमक रहा था, किंतु बाबा की आँखों में प्रसन्नता से अधिक गौरव था।