यह गुडमॉर्निंग फिर जल्दी ही महीने में दो-तीन बार, फिर हफ्ते में होने लगा। मैं पूरे अधिकार के साथ उन्हें आमंत्रित करता और वह खुशी-खुशी आतीं। इस बीच वह मुझे मेरे विषय में बहुत कुछ बतातीं रहती थीं। लेकिन उस अभियान उस योजना के बारे में हर बार टाल जातीं। आखिर चार महीने बाद प्रोफेसर साहब की मेहनत, और मोटी रकम की रिश्वत ने एक कॉलेज में मेरी नौकरी पक्की कर दी।