तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 17

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अप्पी इंतजार करती रही अभिनव अब उसे कहेगा.... बहुत हुआ अब कुछ लिखो पढ़ो.... अपनी पी.एच.डी. कम्पलीट करो...। अभिनव सुबह उठता.... और ... जब तक आॅफिस न चला जाता, अप्पी एक पैर पर खड़ी होती..... उसके जाने के बाद बाकी का सारा काम समेटना, लंच की व्यवस्था..... सास, ससुर का नाश्ता खाना...... दोपहर दो बजे तक का वह थक कर चूर हो जाती। डेढ़ घंटे ही उसके अपने होते जिसमें वह सुबह का आया अखबार जिसे सबने पढ़कर लावरवाही से इधर उधर डाला होता उन्हें इकठ्ठा कर कमरे में लाकर पलटती और कभी कभी तो उसे भी पूरा न पढ़ पाती और नीद में गर्क हो जाती !