उजड़ता आशियाना - पतझड़ - 2

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आज बहुत दिनों के बात एक सुहानी शाम को कुछ फुरसत के पल मिले थे।ऐसा लग रहा था जैसे हम कितने दूर निकल गए,और बहुत कुछ पीछे छूट गया था।अतीत के झरोखों से बहुत सी यादें मन को प्रफुल्लित कर रही थी।उन्हीं यादों की दुनियाँ में टहलते टहलते कदम एक जगह जाकर ठिठक गयी। वो शामें याद आ रही थी जब हम दिन भर के भाग दौड़ के बाद बगल के पार्क में अपने दोस्तों के साथ बैठकर दिन भर का थकान उतारा करते थे।वो हरे भरे पेड़, उनकी लहराती डालियों पर रंग बिरंगी फूलों की एक मनमोहक दुनियाँ। और