आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 23

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सबको लगता था कि यदि आफिया अपने वकीलों का कहा मान ले तो वह इस केस से बरी हो सकती हे। पर वह तो केस को ठीक ढंग से चलने ही नहीं देती थी। उसके वकील उसको कुछ भी कहते रहते, पर वह उनकी बात पर कान ही नहीं रखती थी। आफिया को उसके अपनों ने भी समझाया कि वह वकीलों का कहा माने, पर उसने किसी की बात न सुनी। बड़ी बात यह भी थी कि उसके ऊपर आतंकवाद के चार्ज नहीं लगे थे। विद्वान वकील समझते थे कि यदि सरकार उस पर आतंकवाद के चार्ज़ लगा देती है तो गवाहों को कोर्ट में पेश करना पड़ेगा।