एक बार एक समय हम थे ठोस कुँवारे, बिना प्रेमिका के लगते थे एकदम बेचारे। जब भी आता था वैलेंटाइन का त्यौहार, हमें भी चढ़ता था प्रेमी होने का बुखार। पर जीवन में था प्रेमिका का घोर अभाव, उफ़ स्वघोषित प्रेमी को कोई न देता भाव। मित्रों की प्रेमिका देख हम बड़े ललचाते थे, भाभीजी नमस्ते कहकर सामने से हट जाते थे। कई बार कोशिश करी प्रेमिका बनाने की, प्यार के रंग से जीवन को सजाने की। पर हर बार हो जाती थी कोई कॉमेडी, हमसे प्यार करने को हुई न कोई रेडी। वैलेंटाइन डे मनाने को करी बड़ी ही