सिगरेट - राख - ज़िन्दगी

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मैं अपनी बॉल्कनी से तुम्हारी बॉल्कनी की और देखता हूँ, पर नहीं देख पाता तुम्हे, शायद इसलिये की तुम एक शहर दूर हो, शायद मुझसे भी दूर और तुम्हारा शहर बहुत दूर है शायद चाँद से भी दूर, क्योंकि चाँद दिखता है मुझे मेरी बॉल्कनी से, जलती सिगरेट सा होता है चाँद, नालायक सी रोशनी देता है, अधूरी सी जो शायद ही किसी की ज़रूरत को पूरा करती है, बहुत ही गैर ज़रूरी सी कहीं दूर टिमटिमाता है फिर खत्म हो जाता है लौट जाता है न जाने कहाँ, सिगरेट की तरह दुबारा सुलगाने पर फिर लौट आता है अगली