अन्तिम पत्र... बचपन की दोस्त के नाम !

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हाई...! घमंडी...क्या लिखूं? कुछ समझ नहीं आ रहा है। कहना तो बहुत कुछ चाहता हूं। लेकिन क्या कहूं? कहा से शुरू करूं? कुछ सूझता नहीं है। डरता हूं कहीं फिर से तुम नाराज़ नहीं हो जाओ।कल आपकी दोस्त अंजलि मिली थी। उसने बताया आप अभी भी मुझे बहुत मिस कर रही हो। अच्छा लगा सुनकर की आप मुझे अभी भी मिस के रही हो। लेकिन मैं आपको मिस नहीं करता। अब मेरा पत्र पाकर ये मत समझ लेना कि मैं भी आपको मिस करता हूं। नहीं बिल्कुल नहीं, बिल्कुल मिस नहीं करता। हम्म...इतना लिखकर अंकित ने गहरी सांस ली और