52 “जीत, अभी ना जाओ। कुछ क्षण ओर बैठो मेरे समीप।“ वफ़ाई ने जीत का हाथ पकड़ लिया। जीत ने वफ़ाई के हाथ को देखा, वफ़ाई के मुख के भावों को देखा तथा घात देकर अपना हाथ छुड़ा लिया। जीत दूर चला गया। वफ़ाई ने घात का अनुभव किया, स्वप्न से जाग गई। निंद्रा टूट गई। वफ़ाई ने आँखें खोल कर देखा। वह बंध कक्ष में अपनी शैया पर थी। कक्ष में चारों तरफ देखा। वहाँ झूला भी नहीं था, जीत भी नहीं था। प्रति दिन की भांति वह अकेली ही थी। वफ़ाई ने गहरी सांस ली, आँखें बंध कर