आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 17

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“जी मुझे इजाज़त दो।“ इतना कहते हुए वह बाहर निकल गया और फराखान मार्किट पहुँच गया। वहाँ पहुँचकर वह एक भीड़ वाली जगह पर खड़ा हो गया ताकि अधिक से अधिक लोगों को शिकार बना सके। एक बज गया, पर उसके पेट से बंधा बम न फटा। कोई आधा घंटा वह वहाँ खड़ा रहा, पर उसको बताये गए समय के अनुसार बम नहीं फटा और न कोई धमाका हुआ। आखि़र वह वापस लौट आया तो वहाँ कोई नहीं था। वहाँ से वह घर चला गया। अगले दिन वह उसी मज़हबी हस्ती के पास गया तो उसने कहा, “बधाई हो।“