तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 9

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सुविज्ञ की शादी से लौटकर नीरू जब बड़े उत्साह से अप्पी से मिलने हाॅस्टल गई तो अप्पी को गर्दन तक रजाई लपेटे पड़े पाया। नीरू को देख वह थोड़ी चेती थी .... मुस्कुराई भी थी... पर बोल एक शब्द भी नहीं पाई थी। भयंकर सिरदर्द और तेज बुखार ने उसे पस्त कर दिया था।.... शाम को ही मौसाजी और मौसी जी भी आये ... वार्डन से बातें की और जब वो लोग लौटे तो कार की पिछली सीट पर अप्पी भी मौसी की गोद में सिर धरे पड़ी थी ...। एक-एक करके अप्पी का सारा समान भी हाॅस्टल के कमरे से मौसी की कोठी में आता जा रहा था ... अप्पी आश्चर्य प्रकट करती ... आखिर तबियत संभालते ही उसे हाॅस्टल चले जाना था।