49 “यह चोटी साढ़े चार सौ मिटर की ऊंचाई पर है। यह कच्छ का सर्वोच्च सूर्यास्त बिन्दु है।“ जीत बताने लगा। वफ़ाई ने उसके शब्द नहीं सुने। वह पर्वत के चारों तरफ देख रही थी। वह मुग्ध थी, मोहित थी। उसे अपने ही पर्वत जैसे तरंग अनुभव हो रहे थे। “हे पर्वत, मुझे यह कभी अपेक्षा नहीं थी कि सुनी मरुभूमि भी अपने अंदर इतना सौन्दर्य धारण कर के बैठी है।“ वफ़ाई ने दोनों हाथ छाती पर रख दिये तथा पर्वत को नमन किया। गगन स्वच्छ था। एक-दो छोटे सफ़ेद बादल भटक गये थे जो गगन में विचर रहे