शाकिर उर्फ़...

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शाकिर उर्फ....एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर ही वह जनरल-बोगी के अंदर घुस पाया। थोड़ी भी कमी रहती तो बोगी से निकलते यात्री उसे वापस प्लेटफार्म पर ठेल देते। पूरी ईमानदारी से दम लगाने में वह हांफने लगा, लेकिन अभी जंग अधूरी ही है, जब तक बैठने का ठीहा न मिल जाए। बोगी ठसाठस भरी थी। साईड वाली दो सीट पर एक पर बैग पड़ा था और दूसरे पर एक युवक बैठा था।उसने युवक से पूछा--‘खाली है...?’युवक ने चुपचाप बैग उठाकर उसे बैठने को इशारा किया।उसने युवक को नज़रों से धन्यवाद दिया और पहले तो सीट पर लदा-फंदा बैठ गया। पीछे से