मैं...

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इंसानियत की बस्ती जल रही थी, चारों तरफ आग लगी थी... जहा तक नजर जाती थी, सिर्फ खून में सनी लाशें दिख रही थी, लोग जो जिंदा थे वो खौफ मै यहा से वहां भाग रहे थे, काले रास्तों पर खून की धारे बह रही थी, हर तरफ आग से उठता धुंआ.. चारों और शोर, बच्चे, बूढ़े, औरत... किसी मै फर्क नही किया जा रहा, सबको काट रहे है, लोग अंधे हो चुके दहशत में छुपे इन चेहरों मै, कोई अपने दोस्त... यार को नही पहचानता सिर्फ एक ही नारा लग रहा था... मेरा धरम... मेरा मजहबएक तरफ मंदिर जल