बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ रविवार का दिन था। सुबह वेफ लगभग 10 बजे होंगे। बच्चे पार्क में खेल रहे थे और मम्मी धूप सेक रही थीं। तभी उन्हें ढोल की आवाज सुनाई दी। बच्चो ने देखा कि उनके मोहल्ले के ही कुछ लड़के-लड़कियाँ कुरता-पजामा पहने उस ओर ही आ रहे हैं।सभी लड़के-लड़कियाँ- बेटा-बेटी एक समान,सभी होते हैं-घर की शान।करो न उनमें कोई भेद,फिर न होगा तुम्हें कोई खेद,बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। सभी बच्चे अपना खेल छोड़कर उस ओर दौड़ पड़ते हैं जहाँ से आवाज आ रही थी। सभी बच्चे-( हँसते हुए) अरे! निधि दीदी, विधि दीदी, तपस भैया आप सब