तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 6

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कदमों की आहट सुनकर......सुविज्ञ ने हड़बड़ा कर डायरी मेज पे रख दी भीतर एक गिल्टी सी महसूस हुई...... बाहर से नीरू की चिढ़ी हुई आवाज़ आ रही थी। ‘‘हद है अप्पी..... कितनी देर लगा दी.....’’ ‘’पता है कौन आया है......‘’? .......... ‘’सुविज्ञ भैया आये है.....’’