पहला प्यार(भाग-2)

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आज लगभग दस दिन बीत गये थे। पर जैसा मैंने सोचा था ऐसा कुछ नही हुआ। इतने करीब होने के बावजूद महसूस हो रहा था जैसे मिलो की दुरी हो हम दोनों के बीच। पर जिस प्रयास में मैं असफल होता जा रहा था, उसमें मेरे पापा ने सफलता पाई। भले ही शीतल की और मेरी अभी एक बार भी बात नही हो पाई थी, पर जल्द ही मेरे पिता और शीतल के पिता अच्छे दोस्त बन गये। और ये उनका एहसान ही था कि अब मैंने धीरे धीरे शीतल के घर आना-जाना शुरु कर दिया। अब ऐसा कोई दिन