जले-भुने प्रसाद जी एक दिन सिन्हा जी से कहते हैं – ‘जानते हैं बास, अब बहुत जल्द हम सभी संपादक शब्द सुनने को तरस जाएंगे। जब विज्ञापन संपादक, प्रसार संपादक, व्यवसाय संपादक जैसे पद चल गए हैं तो संपादक शब्द की अर्थवत्ता कहां रही ! फिर वैसे पद को रखने का क्या मतलब जिसका कोई अर्थ न हो? अब आप ही कहिए सही, मालिक अखबार के जरिए अपने व्यवसाय (हित) का संपादन करता हुआ बिजनेस एडीटर बना हुआ है और संपादक नाम का जीव अब खबरों को कारपोरेट इंटरेस्ट के हिसाब से मैनेज कर रहा है यानी संपादक मालिक के हित के हिसाब से खबरों का प्रबंधक यानी न्यूज मैनेजर बन बैठा है।