-डेढ़ महीने तक खाने -पीने के लिये अमरेश गुरूपाल पर आश्रित रहा, उसके बाद उसके फूफा जय नारायण दिल्ली लौट आये गांव से। जय नारायण जब दिल्ली आये तो उन्हें नानमून की कारस्तानियों की इत्तला मिली। ये उनके लिये किसी अचंभे की बात नहीं थी क्योंकि गाँव में उनकी और नानमून को लेकर मुकदमेबाजी चल रही थी।