अमृता इमरोज, प्यार के दो नाम, जिनके बारे में तब जाना ,जब मेरी उम्र सपने बुनने की शुरू हुई थी, और प्यार का वह हल्का एहसास क्या है अभी जाना नहीं था। बहुत याद नहीं आता कि कब किताबें पढने की लत लगी पर जो धुंधला सा याद है कि घर में माँ को पढने का बहुत शौक था और उनकी ‘मिनी लाइब्रेरी’ में दर्जनों उपन्यास भरे हुए थे। माँ तो बहुत छोटी उम्र में छोड़ कर चली गयी और सौगात में जैसे वह अपनी पढने की आदत मुझे दे गयी। यूँ ही एक दिन हाथ में ‘अमृता प्रीतम की रसीदी टिकट’ हाथ में आई और उसको पढना शुरू कर दिया।