मालूम नहीं बाबू गोपी नाथ की शख़्सियत दर-हक़ीक़त ऐसी ही थी जैसी आप ने अफ़्साने में पेश की है, या महज़ आप के दिमाग़ की पैदावार है, पर मैं इतना जानता हूँ कि ऐसे अजीब-ओ-ग़रीब आदमी आम मिलते हैं....... मैं ने जब आप का अफ़्साना पढ़ा तो मेरा दिमाग़ फ़ौरन ही अपने एक दोस्त की तरफ़ मुंतक़िल हो गया.......सादिक़े की तरफ़....... आप के बाबू गोपी नाथ और उस में बज़ाहिर कोई मुमासिलत नहीं है....... लेकिन मैं ऐसा महसूस करता हूँ कि उन दोनों का ख़मीर एक ही मिट्टी से उठा है....... आप के बाबू गोपी नाथ को दौलत विरासत में मिली है। मेरे सादिक़े को अपनी मेहनत-ओ-मशक़्क़त और ज़हानत के सिले में। दोनों शाह ख़र्च थे। आप का बाबू गोपी नाथ बज़ाहिर बुद्धू था। लेकिन दर-अस्ल बहुत होशियार और बाख़बर आदमी था।