विधाता किसी की सारी प्रार्थनाएं नहीं सुनता। ईश्वर ने भी सरोजा की आधी बात ही सुनी थी। लड़का निष्कंटक हुआ तो रामजस बच गए। अगले दिन सारे रिश्तेदारों की आमद हुई। सुरसता के घर से सारे लोग वापस आ चुके थे । साथ में सुरसता और उसके पति जगराम भी आये थे। लोकपाल तिवारी भी आये। रामजस को जो चोट आयी थी वो गहरी तो थी मगर गंभीर नहीं। थाना-पुलिस के डर से हनुमन्त उसे अस्पताल नहीं ले गया था। पास के बाज़ार के एक झोला छाप डॉक्टर के घर दिन भर भर्ती रखा। वहीं टांके लगवाये और दो-तीन बोतल ग्लूकोज चढ़ाकर शाम को घर भेज दिया। वो माथे पर पट्टी बांधे मगर चिन्तामुक्त थे। उनके थोड़े बहुत पैसे ही तो गये थे बाकी तो डाकू सब अपना माल ही ले गये थे।