भीगे पंख - 9

  • 7.7k
  • 1
  • 2.3k

काल की गति अबाध है- वह निर्लिप्त, निरपेक्ष, निस्पृह एवं निर्मम रहकर प्रवाहित होता रहता था। वषानुवर्ष गर्मिंयों की छुट्टियों के आगमन के साथ रज़िया के हृदय में बढ़ने वाली धड़कन, नयनों में उद्वेलित प्रतीक्षा की प्यास, और मोहित के न आने से लू के थपेडा़ें से सूखे चेहरे पर बहने वाले अश्रुओं से उसे क्या मतलब? उसे तो बस अनवरत वर्तमान से भविष्य की ओर प्रवाहित होते रहना है। कहते हैं कि लम्बा समय बीत जाने से हृदय के घाव भर जाते हैं और समय पुराने सम्बंधों की चमक को फीकाकर नये सम्बंध बना देता है परंतु रज़िया के जीवन में ऐसा कुछ घटित नहीं हो रहा था। उसका जीवन मोहित पर ठहर सा गया था- उसका तो जो भी था वह मोहित ही था न तो उसके मन में कोई नवीन सम्बंध बनाने की लालसा थी और न वह अपने को इस योग्य समझती थी। वह तो ऐसी मीरा थी जिसके लिये उनका पद ‘ंमेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ अक्षरश चरितार्थ होता था।