शांतनु - १८

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शांतनु लेखक: सिद्धार्थ छाया (मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण) अठारह मंदिर की सीढियां खत्म होते ही शांतनु ने अपने जूते उतारे और सीधा मंदिर के गर्भगृह में दौड़ पड़ा और जिसको अपना दोस्त मानता था वैसे भगवान शिव से उसने अपनी उस ‘भूल’ पर बार बार माफ़ी मांगी और अगर शिव इस माफ़ी को पर्याप्त नहीं मानते तो उसे कठोर सज़ा देने की भी बार बार विनती की| शांतनु ऐसे ही थोड़ी देर शिव लिंग के पास आँखे बंद कर बैठा रहा| दोपहर के इस समय में कोई मंदिर नहीं आता