उस होली की रात्रि, जब हल्ला ने मोहित को सतिया के वक्ष पर पिचकारी से रंग मारते और सतिया द्वारा उल्लास से मुस्कराते देख लिया था, और फिर जब कमलिया हल्ला के घर गई तब लौटते समय हल्ला ने उसे बैठक में बुला लिया था। उस दिन उन्होने खूब भंग चढा़ रखी थी और उनसे खडा़ नहीं हुआ जा रहा था। कमलिया के अंदर आते ही लड़खडा़ते पैरों से उठकर उन्होने बैठक का दरवाजा़ बंद करना चाहा परंतु सांकल लगाने के पहले ही वह लड़खड़ाते हुए पलंग पर बैठ गये थे। फिर कमलिया सेे लड़खडा़ती जु़बान से बोले थे,