‘‘हट ससुर! जू का कर दओ?’’ कहकर दादी ने पिच्च से कुल्ला किया था और मोहित को अपने पेट से उतारकर अपना मुॅह धोने आंगन के परनाले की ओर दौडी़ थीं। मोहित उनकी प्रतिक्रिया देखकर खिलखिलाकर हंस पडा़ था। मोहित अपनी दादी का बडा़ लाडला था। उस दिन जब दादी मोहित कोे अपने घुटनों पर लिटाकर मालिश कर रहीं थीं तो मोहित ने इतने जोश से अपनी लघुशंका का निवारण किया था कि दादी का मंुह आधा भर गया था। कालांतर में दादी उस घटना को ऐसी मिठास के साथ सुनातीं थी जैसे मोहित ने उन्हें साक्षात अमृतपान कराया हो।