जीत की हथेली अनायास ही खुल गई। वह खुली हथेली को देखता रहा। उसे लगा जैसे उसकी बंध मुट्ठी से कुछ फिसल गया हो, सरक गया हो, छुट गया हो। “क्या था जो अभी अभी हाथों से छूट गया?” जीत चारों दिशाओं में, ऊपर, नीचे, उसे खोजता रहा। किन्तु ना तो वह उसके हाथ आया ना वह समझ पाया कि जो छूट गया वह क्या था। जो छूट गया वह कहीं विलीन हो गया। जीत निराश हो गया। वफ़ाई मौन थी। जीत के मुख पर परिवर्तित होते रहे भावों को देख रही थी, उसे समझने का प्रयास कर रही