नादान दिल - 2

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पता नहीं क्या सुलग रहा था उसके अंदर।वह खामोशी से वैन की खिड़की से बाहर देखने लगी।कुछ दूरी पर कुछ बच्चों भीड़ में शूटिंग देखने के लिए खडे नजर आए।उन्हें निहारती मेघना को जैसे कुछ याद आया और वह परदा खींच कर सीट पर पसर गई।हर कश के साथ कुछ जला रही थी।हर बार धुंए के साथ अंदर की तपिश बाहर निकाल देती।धुएं के छल्ले बनाते उन उड़ते हुए छल्लों मे खुद को देख रही थी मेघना।सरपट दौड़ती हिरनी सी….ढलान पर उतरती अलहड़ सी मेघा….“ओ मेघा....!तेरी माँ बुला रही है।”सुंदर ने आवाज दी।“आती हुँ भाई...! हाथ में समेटे हुए कुछ बेर....मुठ्ठी