लौट आओ दीपशिखा - 8

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“ऐसा क्यों कह रहे हो नील?” दीपशिखा ने उसके होठों पर हथेली रख दी फिर उसके सीने में चेहरा छुपाते हुए वह लरज गई- “कलाकार ऐसे ही होते हैं नील, हम भी तो ऐसे ही हैं लम्बे समय के लिये जा रहे हो..... उस बीच मैं एक प्रदर्शनी लायक चित्र तो बना ही लूँगी ” तभी नीलकांत के सेक्रेटरी ने बेल बजाई- “सर, एयरपोर्ट के लिये निकलने का वक्त हो गया हम जायें?” “हाँ, ठीक है..... कहीं कोई डाउट हो तो फोन कर लेना ” सेक्रेटरी के जाते ही दीपशिखा ने पूछा- “और तुम?”