शांतनु लेखक: सिद्धार्थ छाया (मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण) सत्रह शांतनु का ध्यान अनुश्री की ब्रेसियर से चिपके हुए कुर्ते से दिख रहे, किसी भी पुरुष के स्वप्न में आनेवाले वक्षस्थल पर गया| अनुश्री मेन्यु कार्ड देखने में व्यस्त थी और शांतनु को उसके गुलाबी कुर्ते के पीछे छिपा उसका सफ़ेद अंत:वस्त्र स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था| अनुश्री को इस हालत में देख कर कोई भी पुरुष पागल हो सकता था, शांतनु को तो यह सब अचानक ही भेंट में मिल गया था| शांतनु का ध्यान अब वहां चिपक