जून की चिलचिलाती दोपहरी में हवा एकदम शांत रुकी हुई थी, परंतु फिर भी उूष्मा की लहरें ऐसे प्रवाहित हो रही थीं जैसे ईथर के माध्यम में विद्युत्चुम्बकीय लहरें प्रवाहित होती रहतीं हैं। फ़तेहपुर कस्बे के अधिकतर व्यक्ति बदन को जलाने वाली उस ग्रीष्म से बचने हेतु कमरों की छांव में बंद हो गये थे- और अलसाये उनींदे पडे़ थे। ऐसे में मोहित दबे पांव अपने मौसा के घर से बाहर निकल आया था और पीछे जाकर जामुन के पेड़ की छांव में खडे़ होकर सामने के ताल को देख रहा था, जहां चार बतखें एक पंक्ति में तैर रहीं थीं। आगे तैरने वाला नर और पीछे तैरने वाली मांदा बतखें तो धीर-गम्भीर परंतु सतर्क मुद्रा में आगे बढ़ रहीं थीं परंतु बीच में तैरने वाले दोनों बच्चे कभी-2 पानी में डुबकी लगाकर कुलांच भर लेते थे।