‘‘या अल्लाह....या अल्लाह......रहम कर......हाय मरी .......हाय मरी.....’’ तहसील फ़तेहपुर के विषाल परिसर में स्थित एक क्वार्टर के सीलनभरे छोटे से कमरे, जिसके फ़र्श और दीवालों का प्लास्टर बेतरतीबी से उखडा हुआ था, मंे बंसखटी पर पडी़ एक कृशकाय औरत कराह रही थी। वह स्त्री सलीमा थी- तहसील फ़तेहपुर के कुर्क-अमीन मीरअली की पहली बीबी। दस साल पहले उसकी शादी मीरअली से हुई थी और आज चैथी संतान के सम्भावित जन्म की पीडा़ से वह छटपटा रही थी। हड्डियों का ढांचा मात्र बची सलीमा से मीरअली का मन कई साल पहले भर गया था और उसने अपनी फुफेरी शोड़षी बहिन से दूसरा निकाह पढ़कर नई बीबी को अलग एक नया मकान ख़रीद कर उसमें रख दिया था।